Nirjala Ekadashi Vrat – Bheem Ekadashi Vrat

 एकादशी के दिन जगत के पालनकर्ता भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है, निर्जला एकादशी का उपवास सभी एकादशियों के उपवास से सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, ऐसा इसलिए क्यूंकि यह एकादशी का उपवास सभी २४ एकादशी अथवा यदि साल मे मलमास है तो २६ एकादशी के उपवास के समतुल्य हो जाता है, ऐसा इसलिए है क्यूंकि इस एकादशी के नियम बहुत ही कठोर है इस दिन बिना अन्न जल ग्रहण किये हुए व्रत रखना पड़ता है और क्यूंकि यह ज्येष्ठ मास में आता है और उस समय गर्मी अपने प्रचंड रूप मे होती है तो यह व्रत रखना बहुत ही मुश्किल हो जाता है|

निर्जला एकादशी व्रत के लाभ

वो लोग जो सभी २४  एकादशी व्रत जो साल भर में आते हैं उनको नहीं कर सकते हैं तो वो लोग इस एक एकादशी व्रत करने मात्र से सभी २४ एकादशी व्रत करने का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं|

 



भीम एकादशी अथवा निर्जला एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

इस कथा का सम्बन्ध महाभारत काल से है जोकि इस प्रकार से है -  पांडवो में दूसरे नंबर के भाई गदाधारी भीम खाने पीने के बहुत शौक़ीन थे, जिसके कारण वो एकादशी व्रत का पालन नहीं कर पाते थे परन्तु उनके सभी भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और महारानी द्रौपदी एकादशी व्रत का निष्ठा के साथ पालन करते थे। जिसके कारण गदाधारी भीम के मन में ये विचार आता था की वो एकदशी का व्रत न करके अपने इष्ट श्री हरी नारायण का अनादर तो नहीं कर रहा है , इन सभी प्रश्नों का हल जानने के लिए भीमसेन महर्षि वेद व्यास के पास जाते हैं और उन्हें अपनी बात से अवगत करते हैं, भीमसेन से सारी जानकारी लेने के पश्चात महर्षि वेदव्यास उनको इस समस्या का हल बताते है और कहते हैं के हे भीम तुम ज्येष्ठ मास के एकादशी के दिन जो के साल में एक बार आती हे उसदिन निर्जल (बिना अन्न जल ग्रहण करे हुए ) पूरी निष्ठा के साथ व्रत करो तो इस एकादशी व्रत करने मात्र से ही तुम्हे साल भर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होगा, और तुम्हें भगवान् श्री हरी की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होगी, और तभी से ये निर्जला एकादशी भीम एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध हो गयी |


 

व्रत के नियम

·         इस दिन पूरे दिन कुछ भी खाया पिया नहीं जाता |

·         यह व्रत ज्येष्ठ मास मे किया जाता है, चूँकि इस मास मे अत्यधिक गर्मी होती है तो यह व्रत बहुत मुश्किल हो जाता है|

·         इस व्रत को २४ घंटे से भी जयादा अवधि तक रखना पड़ता है क्यूंकि यह व्रत एकादशी से शुरू होता है जोकि द्वादशी तिथि मे सूर्योदय होने के पश्चात खोला जाता है|


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